भ्रमर गीत
मेरी परिकल्पनाओं की परिधि
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मंगलवार, 1 मार्च 2022
महाशिवरात्रि

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021
नव वर्ष 2022 की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
भूल सभी बीती बातों को,मिलजुलकर जीन्दगी बिताये।
नये साल का जश्न मनाएँ।
विगत वर्ष जैसे भी बीता, भले गया हो रीता-रीता।
विपदाओं ने भले झिंझोड़ा, आशाओं ने मुंह न मोड़ा।
हर आरंभ का अन्त है निश्चित,मन में फिर क्यों प्रश्न हैं किंचित।
लगे रहे नित नये सृजन में,लीन रहा मन प्रभू भजन में।
पाना खोना अटल सत्य है, हम क्यों इससे नित घबरायें।
नये साल का जश्न मनायें।

बुधवार, 22 दिसंबर 2021
समसामयिक मुक्तक

शुक्रवार, 19 मार्च 2021
ग़ज़लें
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1731339097074665&id=100005957738026&sfnsn=wiwspmo

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021
अनकहे पहलू

सोमवार, 25 जनवरी 2021
गणतंत्र दिवस https://youtu.be/BW3o3PWse64

गुरुवार, 7 जनवरी 2021
मुक्तक

सोमवार, 4 जनवरी 2021
ये काव्य, नज़रें मिलीं-अमरेश गौतम, खून से लथपथ - ऐनुल, गंवाया होगा-राजिंदर सिंह बग्गा जी।

शनिवार, 12 दिसंबर 2020
अनछुए पहलू से चार मिसरे

बुधवार, 2 दिसंबर 2020
ग़ज़ल

शुक्रवार, 10 मई 2019
मुक्तक

मंगलवार, 5 मार्च 2019
मुक्तक

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019
जय भारत

एक बार तो कह दो
तुम बेवफा नहीं हो एक बार तो कह दो,
मुझसे ख़फा नहीं हो एक बार तो कह दो।
तड़पा मैं एक उम्र जिस ग़म से इस कदर,
उसकी दवा नहीं हो एक बार तो कह दो।
पाया हूँ जबकि राह भटक कर जहाँन में,
तुम फ़लसफा़ नहीं हो एक बार तो कह दो।
मतलब के आड़ में कभी उजड़े जो आशियाँ,
तुम ग़मज़दा नहीं हो एक बार तो कह दो।
हर शख्स सियासी है सियासत के दौर में,
सबसे जुदा नहीं हो एक बार तो कह दो।
मुझसे ख़फा नहीं हो एक बार तो कह दो।
तड़पा मैं एक उम्र जिस ग़म से इस कदर,
उसकी दवा नहीं हो एक बार तो कह दो।
पाया हूँ जबकि राह भटक कर जहाँन में,
तुम फ़लसफा़ नहीं हो एक बार तो कह दो।
मतलब के आड़ में कभी उजड़े जो आशियाँ,
तुम ग़मज़दा नहीं हो एक बार तो कह दो।
हर शख्स सियासी है सियासत के दौर में,
सबसे जुदा नहीं हो एक बार तो कह दो।
रेखा चित्र-अनुप्रिया दीदी

मंगलवार, 3 जनवरी 2017
इरादा अब भी है
इरादा अब भी है, उनसे प्यार का।
वो मिलेंगे तो पूँछूगा, भुला दिया कैसे मुझको,
जो एक पल नहीं रहता था, बिना देखे मुझको।
ये वक्त बड़ा काफिर है, इसका भरोसा क्या,
कब दूर कर दे, कब मिला देश, भरोसा क्या।
इसको नहीं फिकर, किसी भी बाहर का,
इरादा अब भी है..........
बड़े खुश्नुमाँ थे, वो पल, वो दिन, वो रातें,
जब दिल ने चाहा, हो जाती थीं मुलाकातें।
कहकसाओं के हुजूम में, हसीन थीं रातें,
उसी आलम में हुआ करती थीं बातें।
इंतजार नहीं रहता, अब उनके इंतजार का,
इरादा अब भी है........
उनके रूखसार का तिल, खुद उन्हें चिढ़ाएगा,
जब भी वो जालिम, आइना करीब लाएगा।
वो तिल नहीं, प्यार की निशानी है,
उनको मालूम है, ये किसी की मेहरवानी है।
निशान ये सलामत रहे, मेरे राज़दार का,
इशारा अब भी है........

शनिवार, 31 दिसंबर 2016
नववर्ष 2017
नई सुबह से कई उम्मीदों की दरकार थी,
चंद अंकों के सिवा कुछ नहीं बदला।
सभी मित्रों एवं देशवासियों को नववर्ष की अशेष शुभकामनाएँ।
चंद अंकों के सिवा कुछ नहीं बदला।
सभी मित्रों एवं देशवासियों को नववर्ष की अशेष शुभकामनाएँ।

बुधवार, 21 दिसंबर 2016
नोटबंदी-एक सिलसिला

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016
नोटबंदी-एक सिलसिला
जमा पूरी रकम को, कालाधन न कहो साहब,
गरीबों के एक-एक रुपये का,उसी में हिसाब है।
कालाधन तो अब,आप जैसों से निकले हैं,
जो कि हर हाल में, देशहित में खराब है।
गरीबों के एक-एक रुपये का,उसी में हिसाब है।
कालाधन तो अब,आप जैसों से निकले हैं,
जो कि हर हाल में, देशहित में खराब है।

शनिवार, 3 दिसंबर 2016
नोटबंदी
रहा फैसला निकहा दादू,
होइ गइ चूक समीक्षा मा।
बिन तइयारी बइठी गये हों
कउनउ ऊंचि परीक्षा मां।
जेका कह समर्थन दादू,
ऊत एनकर भाग रहा।
अबहूं लाईन है राज म तोंहरे,
तबउ जब ओंनकर राज रहा।
मानन के हम काम नीक ई,
समय, योजना ठीक नहीं।
बिजली पानी घर के किल्लत,
चलभाष रीति इ ठीक नहीं।
मूलभूत सुविधन के सगले,
कर व्यवस्था पहिले।
नहीं त अइसन फरमानन से,
जाब समय से पहिले।
होइ गइ चूक समीक्षा मा।
बिन तइयारी बइठी गये हों
कउनउ ऊंचि परीक्षा मां।
जेका कह समर्थन दादू,
ऊत एनकर भाग रहा।
अबहूं लाईन है राज म तोंहरे,
तबउ जब ओंनकर राज रहा।
मानन के हम काम नीक ई,
समय, योजना ठीक नहीं।
बिजली पानी घर के किल्लत,
चलभाष रीति इ ठीक नहीं।
मूलभूत सुविधन के सगले,
कर व्यवस्था पहिले।
नहीं त अइसन फरमानन से,
जाब समय से पहिले।

बुधवार, 24 अगस्त 2016
शुभ सबेरा मित्रों,
आप सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
दोस्तों श्रीकृष्ण भगवान मेरे इष्टदेव है। इसलिये उनके प्रति मेरी छोटी सी प्रार्थना —
मथुरा सा घर में,आना प्रभु,
इस गोकुल में खेल, रचाना प्रभु।
मुरलीधर मेरे इष्टदेव,
इस निर्धन को नहीं,भुलाना प्रभु।
"बोलो कृष्ण कन्हैयालाल की जय"मेरा चलचित्र
आप सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
दोस्तों श्रीकृष्ण भगवान मेरे इष्टदेव है। इसलिये उनके प्रति मेरी छोटी सी प्रार्थना —
मथुरा सा घर में,आना प्रभु,
इस गोकुल में खेल, रचाना प्रभु।
मुरलीधर मेरे इष्टदेव,
इस निर्धन को नहीं,भुलाना प्रभु।
"बोलो कृष्ण कन्हैयालाल की जय"मेरा चलचित्र

मंगलवार, 9 अगस्त 2016
उलाहना
नहीं अच्छे लगते उन वादों जैसे दिन,
कहां गए वो फरिश्ते जिन्होंने वादे किए थे।
कहां गए वो फरिश्ते जिन्होंने वादे किए थे।

रविवार, 7 अगस्त 2016
मित्रता दिवस की अनन्त शुभकामनाएँ
दिल में कोई राज हो तो मत छुपाना,
धड़कन-ए-आवाज हो तो मत छुपाना।
मित्रता के हर कयास पर कायम रहूंगा मैं,
गर कोई आगाज़ हो तो मत छुपाना।
धड़कन-ए-आवाज हो तो मत छुपाना।
मित्रता के हर कयास पर कायम रहूंगा मैं,
गर कोई आगाज़ हो तो मत छुपाना।

सोमवार, 18 जुलाई 2016
गुरू पूर्णिमा

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016
तो याद करना
कोई दर्द, कोई चुभन जब हद से गुजर जाए,तो याद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़ जाए,तो याद करना।
बिछड़ते वक्त के ये आखिरी, अल्फाज थे उनके,
जो अब तक सम्भाले रक्खा, यही राज थे उनके।
ये वो पल थे जो,अब तक भुलाये न गये,
मैने छिपाये रक्खा,जो हमराज थे उनके।
उसने तड़प के कह दिया, न बर्बाद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़े,तो याद करना।
उस वक्त इज़्तिराब में, सोचा न गया,
आँसू भी रुखसार का,पोंछा न गया।
उसने छिपाए दर्द,दामन के आड़ में,
मुझसे छुपाया अश्क,समूचा न गया।
गैरों के सामने न,फरियाद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़ जाए,तो याद करना।
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़ जाए,तो याद करना।
बिछड़ते वक्त के ये आखिरी, अल्फाज थे उनके,
जो अब तक सम्भाले रक्खा, यही राज थे उनके।
ये वो पल थे जो,अब तक भुलाये न गये,
मैने छिपाये रक्खा,जो हमराज थे उनके।
उसने तड़प के कह दिया, न बर्बाद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़े,तो याद करना।
उस वक्त इज़्तिराब में, सोचा न गया,
आँसू भी रुखसार का,पोंछा न गया।
उसने छिपाए दर्द,दामन के आड़ में,
मुझसे छुपाया अश्क,समूचा न गया।
गैरों के सामने न,फरियाद करना,
जिन्दगी में कभी जरूरत पड़ जाए,तो याद करना।

रविवार, 10 जुलाई 2016
समसामयिक
आसार नहीं अच्छे दिन के,
ये केसर क्यारी के दंगल।
नहीं भा रहे सेव बंगीचे,
बना कुछ दिनों से जंगल।
विदेश नीतियां ठीक हैं लेकिन,
राष्ट्रनीति भी जरुरी है।
रक्षक के होते ये हालत,
कह दो क्या मजबूरी है।
आस हमारी टूट रही अब,
जो तुमने बंधवाया था।
छप्पन इंची सीना ताने,
जो नारे लगवाया था।
इक्कीसवीं सदी उज्वल भविष्य,
क्या अब भी सोच रखेंगे अब?
नाकारे जब जंगी होंगे,
क्या कुछ न तोड़ सकेंगे अब?
ये केसर क्यारी के दंगल।
नहीं भा रहे सेव बंगीचे,
बना कुछ दिनों से जंगल।
विदेश नीतियां ठीक हैं लेकिन,
राष्ट्रनीति भी जरुरी है।
रक्षक के होते ये हालत,
कह दो क्या मजबूरी है।
आस हमारी टूट रही अब,
जो तुमने बंधवाया था।
छप्पन इंची सीना ताने,
जो नारे लगवाया था।
इक्कीसवीं सदी उज्वल भविष्य,
क्या अब भी सोच रखेंगे अब?
नाकारे जब जंगी होंगे,
क्या कुछ न तोड़ सकेंगे अब?

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