कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 1 मार्च 2016

ग़ज़ल

मुफलिसी में भी यहाँ, सुकून से हर बशर रहता है,
उन रेशमी परदों की दीवारों से,डर लगता है।

कितनी आजादी है,इन बस्तियों में रहने वालों को,
अमीरों की नगरी में कैदखाने सा,हर घर लगता है।

कितनी मासूमियत है,इनके चेहरे पर देखिए,
महलों वालों का दंभ से,अकड़ा सर लगता है।

वो नहीं समझते इन्हें, बराबरी के काबिल,
'अयुज' उनके शानो-शौकत में, इनका असर दिखता है।

कोई टिप्पणी नहीं: