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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

बेटी की विदाई



नये रिस्तों से बंधन, कुछ बेगाने हो गये,
अनजाने अपने हुए, अपने अनजाने हो गये।

जिस आंगन को महसूस किया, अपनापन के भाव से,
नया किस्सा क्या मिला, सब फसाने हो गये।

एहतमाम जिन चीजों का किया, शिद्दत से अब तलक,
मेरे लिए वो ही सब, नजराने हो गये।

चेहरा देखूं मां का या भाई की देखूं शकल,
मेरे लिए आज सब क्यों मनमाने हो गये।

बाबूल कैसी ये रीत, बनाई तुमने 'अयुज'
कि सारे अपने ही पराये, क्यूँ न जाने हो गये।

                          

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