भूखी,बेबस और बेचारी सी जिन्दगी
देखो कैसे बिता रहे हैं, नाकारी सी जिन्दगी।
तन में फटे लिबास और पद में नहीं पादुका है,
रहने को न सुखद गेह,खाना भी न मन का है।
भूखे,प्यासे करते रहते, दिनभर ये मजदूरी,
हे रब! देख तेरे वंदों की,कैसी है मजबूरी।
बदहाली,लाचारी और बेगारी सी जिन्दगी,
देखो कैसे बिता रहे हैं ..........
खुद की गत,हालत पर कभी मलाल नहीं करते,
मालिक के फरमानों पर,आँखे लाल नहीं करते।
जैसा हुआ हुक्म, काम वैसा ये करते,
फिर भी मालिक से देखो,खुदा सा डरते।
सहमी हुई, दबी सी,कंगाली सी जिन्दगी,
देखो कैसे बिता रहे हैं ..........
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