खुशी मुझे इतनी की बसर हो जाय,
उन्हें महल से घर में एहतमाम की चिंता थी।
हम मिल बांट के गुजर करते हैं अब भी,
उनको सारे घर में निज़ाम की चिंता थी।
जी रहे हैं दोनों ही फर्क बस इतना है,
मुझको हर सुबह उन्हें शाम की चिंता थी।
मिल्कियत उतनी ही कि भूखा न रहे कोई,
मुझको इतनी ही उनको एहतराम की चिंता थी।
उन्हें महल से घर में एहतमाम की चिंता थी।
हम मिल बांट के गुजर करते हैं अब भी,
उनको सारे घर में निज़ाम की चिंता थी।
जी रहे हैं दोनों ही फर्क बस इतना है,
मुझको हर सुबह उन्हें शाम की चिंता थी।
मिल्कियत उतनी ही कि भूखा न रहे कोई,
मुझको इतनी ही उनको एहतराम की चिंता थी।
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