चंन्द पंक्तियाँ मेरी कविता "मैं दिल्ली हूँ" से--
मैं दिल्ली चीख-चीखकर, कब तक यूँ पुकार करूँ,
किस पर मैं गुस्सा दिखलाऊँ, औ किस पर हुंकार भरूँ।
नाक देश की कहते हो तो, थोड़ा सा अनुबंध करो,
राजनीति के चूल्हे पर यूँ, रोटियाँ सेकना बंद करो।
सुनो कष्ट मोदी मंत्रालय, केजरी कुनबा आह सुनो,
सिर्फ योजना लागू कर ना, अपनी वाह-वाह सुनो।
मैं दिल्ली चीख-चीखकर, कब तक यूँ पुकार करूँ,
किस पर मैं गुस्सा दिखलाऊँ, औ किस पर हुंकार भरूँ।
नाक देश की कहते हो तो, थोड़ा सा अनुबंध करो,
राजनीति के चूल्हे पर यूँ, रोटियाँ सेकना बंद करो।
सुनो कष्ट मोदी मंत्रालय, केजरी कुनबा आह सुनो,
सिर्फ योजना लागू कर ना, अपनी वाह-वाह सुनो।
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