हर मुश्किल को मुकाम बना लिया,
देखो मैंने कैसा, आवाम बना लिया।
वो कहते थे, चूर-चूर हो जाओगे थककर,
मैंने थकान को ही, आराम बना लिया।
वो हर सुबह, आगाज़ करते हैं, मसले का,
मैंने हर आगाज़ को, अंजाम बना लिया।
वो कहते थे उलफत में जो भी हमसे,
उन्हीं बातों को हमनें, पैगाम बना लिया।
हमनें तो छेंड़ी थी, जंग-ए-मोहब्बत,
उसने यूँ ही महासंग्राम बना लिया।
बहुत हो चुका,अब तालीम ले ली 'अयुज'
कहना कुछ नहीं, खामोशी ही परिणाम बना लिया।
देखो मैंने कैसा, आवाम बना लिया।
वो कहते थे, चूर-चूर हो जाओगे थककर,
मैंने थकान को ही, आराम बना लिया।
वो हर सुबह, आगाज़ करते हैं, मसले का,
मैंने हर आगाज़ को, अंजाम बना लिया।
वो कहते थे उलफत में जो भी हमसे,
उन्हीं बातों को हमनें, पैगाम बना लिया।
हमनें तो छेंड़ी थी, जंग-ए-मोहब्बत,
उसने यूँ ही महासंग्राम बना लिया।
बहुत हो चुका,अब तालीम ले ली 'अयुज'
कहना कुछ नहीं, खामोशी ही परिणाम बना लिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें