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रविवार, 6 दिसंबर 2015

समसामयिक

बार-बार क्यों दोहराते हो,
बँटवारे के किस्से को।
घात लगाये क्यों बैठे हो,
काश्मीर के हिस्से को।

भूतकाल में हुई गलतियाँ,
दोहराई न जाएँगी,
एक लाश ग़र गिरी इधर,
दुगुनी भिजवाई जाएगी।

दिल्ली को आतंकवाद की,
धमकी तुम दे जाओगे।
तो क्या खून सने हाँथों को,
न्योता हमसे पाओगे।

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