बार-बार क्यों दोहराते हो,
बँटवारे के किस्से को।
घात लगाये क्यों बैठे हो,
काश्मीर के हिस्से को।
भूतकाल में हुई गलतियाँ,
दोहराई न जाएँगी,
एक लाश ग़र गिरी इधर,
दुगुनी भिजवाई जाएगी।
दिल्ली को आतंकवाद की,
धमकी तुम दे जाओगे।
तो क्या खून सने हाँथों को,
न्योता हमसे पाओगे।
बँटवारे के किस्से को।
घात लगाये क्यों बैठे हो,
काश्मीर के हिस्से को।
भूतकाल में हुई गलतियाँ,
दोहराई न जाएँगी,
एक लाश ग़र गिरी इधर,
दुगुनी भिजवाई जाएगी।
दिल्ली को आतंकवाद की,
धमकी तुम दे जाओगे।
तो क्या खून सने हाँथों को,
न्योता हमसे पाओगे।
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