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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

ग़ज़ल


दिल की रज़ा श़ोख नज़र से बयाँ हो गयी,
देखिए आज उनसे क्या खता हो गयी।

अब तक गुरूर था, न जानें किस बात का,
वही आज उनकी, सजा हो गयी।

उलझते थे गेसू तो चिढ़ते थे वो,
वो फिज़ा आज वादे - सबा हो गयी।

राह तकते मेरी मेरे ही कूँचे में,
उनकी छिपने की आदत कहाँ खो गयी।

वो श़ोखी, वो रंगत, चाल की वो लचक,
'अयुज' वो नज़ाकत कहाँ खो गयी।

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