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शनिवार, 26 दिसंबर 2015

मुक्तक

न कारागार, न पहरा था कोई,
न जमाने की बंदिशें,न सहरा था कोई।
इतनी शिद्दत से इन्तजार किया उसने,
इस कदर उसके दिल में, ठहरा था कोई।

             
              

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