मैं श्रंगारिक कलमकार हूँ,
कमियाँ ना लिख पाऊँगा।
किन्तु देख हालत ऐसी,
कुछ बातें तो कह जाऊँगा।
विकलाँग नहीं वो मानव जिसके,
बस अंगों में कमियाँ हों।
है सरकार अपाहिज वो भी,
जिसके कर्मों में कमियाँ हों।
वो जननायक नहीं कि जो,
समाज विरोधी काम करे।
अपनी झोली भरा करे,
औ शेखी में ही नाम करे।
कहीं टूटती शूकरबस्ती,
बँगला बने कहीं न्यारा।
सवा करोड़ का लोगों का प्रतिनिधि,
बन बैठा यूँ बेचारा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें