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रविवार, 22 नवंबर 2015

पूर्व काल


रह-रह कर अब याद आ.     रहा,
 वो मेरा एकाकी जीवन।

इक कमरे का रहवासी था,
महलों सा एहसास लिए।
स्वयं पकाना, खाना पीना,
कभी-कभी उपवास लिए।

जन जीवन स्वच्छन्द और जँचता था बेबाकी जीवन,
वो मेरा एकाकी जीवन।

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