लोकतंत्र के अधिकारों का,
यूँ न दुरुपयोग करो।
उठे जो कोई सोच अगर,
मष्तिस्क का सदुपयोग करो।
शयनकक्ष की बातें कहकर,
देश में अब न द्वन्द्व करो।
कलाकार हो कला ही बेचो,
ईमान बेचना बंद करो।
समता का अधिकार हनन कर,
जिसने ऐसा बयान दिया।
प्रशासन की नेकी देखो,
उसकी रक्षा का ध्यान दिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें