बुधिया ने हर बार की तरह
इस बार भी
पूरा खेत बोया था
लहलहाती फसलों को देख
न जाने कितने सपने भी बोया
सपने और फसल एक साथ
पले और बढ़े भी।
कभी पके और काटा भी
किन्तु नहीं मिला तो उचित मूल्य
और कभी मौसम के मार ने
काटने का मौका ही नहीं दिया
शेखी चिल्ली के अरमान
कभी खेत में ही नष्ट हुए
कभी खलिहान में
घर तक कब पहुंचेंगे?
साकार कब होगें??
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