कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 8 मार्च 2016

फसल



बुधिया ने हर बार की तरह 
इस बार भी 
पूरा खेत बोया था 

लहलहाती फसलों को देख 
न जाने कितने सपने भी बोया 
सपने और फसल एक साथ 
पले और बढ़े भी। 

कभी पके और काटा भी 
किन्तु नहीं मिला तो उचित मूल्य 

और कभी मौसम के मार ने 
काटने का मौका ही नहीं दिया 
शेखी चिल्ली के अरमान 
कभी खेत में ही नष्ट हुए 
कभी खलिहान में 

घर तक कब पहुंचेंगे? 
साकार कब होगें?? 

                     
                       

कोई टिप्पणी नहीं: