कुल पेज दृश्य

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

समसामयिकी


संसद में ये वाक युद्ध यूँ,
कभी नहीं रूकेगी क्या?

देश जूझता कई जगह पर,
पाने को दाना-पानी।
बेकारी है प्रतिदिन बढ़ती,
हर रोज़ मगज है भरमानी।

आपसी रंजिशें नेताओं की,
यूँ ही बनी रहेंगी क्या??

गैर मुल्क का झण्डा यूँ ही,
काश्मीर में लहरेगा?
अपराधी को कानून व्यवस्था,
जतन करेगी पहरे का?

घर से बाहर जाने को,
रोज़ निर्भया डरेगी क्या?

                 
                

कोई टिप्पणी नहीं: