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शनिवार, 28 नवंबर 2015

समसामयिक


 हे भारत के कर्ता-धर्ता,
 मेरी भी इक बात सुनो।
 कलम सिपाही कहता है कुछ,
 इन बातों को इक बार गुनो।



 ना जाने कितने समझौते,
 बस सेवाएँ जारी की।
 फिर भी दुश्मन समझ न  पाया,
 हम पर गोलाबारी की।



 जब तक रुके न गोलाबारी,
 महफूज न केसर क्यारी हो।
 न खेलकूद, न शाँन्तिवार्ता,
 न दुश्मन से यारी हो।










 









 









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