हे भारत के कर्ता-धर्ता,
मेरी भी इक बात सुनो।
कलम सिपाही कहता है कुछ,
इन बातों को इक बार गुनो।
ना जाने कितने समझौते,
बस सेवाएँ जारी की।
फिर भी दुश्मन समझ न पाया,
हम पर गोलाबारी की।
जब तक रुके न गोलाबारी,
महफूज न केसर क्यारी हो।
न खेलकूद, न शाँन्तिवार्ता,
न दुश्मन से यारी हो।
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