सर्दी की विकट मार है
पैसे वाले तो मोट-मोटे
गद्दे और रजाई से सर्दी को डराते हैं
और गरीबों को सर्दी
बुधिया ने एक रजाई बनवाई
घर में ओढ़ेगा कौन?
इस बात पर हुई लड़ाई
अपनी पुरानी रजाई माँ को दे दी
नई खुद लेगा,बाकी लोग?
बेचारा रोटी और भुर्ते के
टुकड़े तो कर लेता था
अब?
हमारे नेताओं के भाषण में
इस्तेमाल शब्द न उसके काम आते
न अच्छे लगते
तरक्की इतने सालों में
कहाँ आई,कहाँ रुकी
और किधर जा रही है?
यह सवाल वही रुका है
जहाँ बुधिया का।
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